Kavita Jha

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भोर हुई #लेखनी काव्य प्रतियोगिता -27-Dec-2021

भोर हुई...

भोर हुई और मैंने खिड़की खोली..
सूरज की किरणें मुझ से बोली

चल आलस नींद त्याग
शुरु कर अपना दिन
समय ना कर बर्बाद

एक एक पल है
कीमती अपने जीवन का
कुछ नया तूँ कर ले
अपने जीवन को खुशियों से भर ले

कल तो बीत गया
आज को तूँ जी ले
भोर की यह सुंदरता
अपने मन में भर ले

सूरज की वो किरणें
करती रही मुझसे बातें
और मुझको भी होने लगा विश्वास

आज का दिन होगा कुछ तो खास
जगाई मैंने भी मन में आस
न होगा मन उदास
मेरे अपने रहेंगे मेरे आसपास

सबकी खुशी में ही तो है मेरी खुशी
न रहे कोई दुखी
यही सोच मैंने अपनी आँखें मूंदी

सूरज की किरणें बोली
तूँ न सुधरेगी कभी
खुद से पहले सबकी
करती है जो तूँ इतनी चिंता

तूँ भी तो है बिलकुल मेरे जैसी
जैसे मैं अपने प्रकाश से
पूरी दुनिया को जगमगाऊं

वैसे ही तो तूँ भी अपने घर आँगन में
खुशी का दीप जलाए
हाँ चाहे खुद जलती जाए

याद दिलाने आती है
यूं ही रोज सवेरे सूरज की किरणें
मेरी खिड़की के सीसे पर अपनी दस्तक देकर
मेरे घर को और मेरे मन को प्रकाशित करके

मुझे मेरे दिन भर के काम याद दिलाऐ
ये मेरी सखी मुझे लगती है भली
माँ की याद दिलाऐ

जब माँ उठा उठा थक जाती थी
मैं उसको कितना सताती थी

अब ये सूरज की किरणें
करती हैं नित वही काम

और अपनी माँ की तरह
मैं भी तो अपने बच्चों को हूँ उठाती
और वो भी उसी तरह मुझको हैं सताते

सूरज की किरणें मुझको देख
मन ही मन मुस्कराऐ
और अपने किरणों से मुझमें
मेरी माँ जैसे गुण भर जाऐ।

***
कविता की कविता
(स्वरचित और मौलिक)

#लेखनी

#लेखनी काव्य प्रतियोगिता

27.12.2021

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